आज की उपभोक्ता संस्कृति हमारे रीति-रिवाजों और त्योहारों को किस प्रकार प्रभावित कर रही है? अपने अनुभव के आधार पर एक अनुच्छेद लिखिए?
भारतीय समाज में तेजी से उपभोक्ता संस्कृति बढ़ रही है। इससे मनुष्य के मन ही नहीं हमारे रीति—रिवाज और त्यौहारों पर भी गहरा असर पड़ रहा है। उपभोक्तावाद से हमारे रीति—रिवाज और त्यौहारों में नकारात्मक बदलाव आए हैं जो निम्न प्रकार हैं—
रीति-रिवाज- पहले के समय में रीति—रिवाज में पूरा परिवार शामिल होता था। सभी साथ बैठ एक—दूसरे के संग खुशियां बांटते थे। इससे अपनापन बना रहता था। आज मनुष्य वस्तुओं में इतना लिप्त हो गया है कि उसे अपने परिवार से मिलने की भी फुर्सत नहीं रही है। बस मोबाइल उठाया और संदेश भेज दिया। किसी के पास आने-जाने का समय नहीं रह गया है।
त्यौहार- कुछ वक्त पहले तक भारतीय परिवारों में त्यौहार धूम—धाम से मनाया जाता था। आज त्योहार में उल्लास कम दिखावा ज्यादा रह गया है। त्योहार के नाम पर बाजार सज जाते हैं और लोग फिजूलखर्ची कर खूब सामन खरीद लेते हैं। दीपावली में तो सामान महंगे होने पर भी खूब बिक्री होती है। लोगों में ये होड़ मची रहती है कि हमारा घर सजावट के बाद सबसे अच्छा दिखे दूसरे का नहीं। पूजा की सामग्री में भी ऐसी चीजों का उपयोग होने लगा है जिनका इस्तेमाल पहले नहीं किया जाता है।